मुल /नासीर खान :-गर्मी गर्मी सबकी निगाहे उपर की तरफ. कभी बादल छाते नज़र आते है तो लगता है आज तो बरसेगा ही बरसेगा लेकीन हवा चलती है और बादल भी हवा के संग खेलकुद कर आगे बढ़ जाते है ईसके बावजूद किसान मिट्टी से सोना उगाने की तय्यारी पुरी कर चुका हैं क्यो के वो ना उम्मीद नही है
Every eye is looking up to the sky with hope
किसान के साथ साथ बिज ,खाद,दवाई वालों ने किसान की तरह मेघाओं के बरसने के उम्मीद संजोए रख्खी है, किसान रोज़ाना अपने खेत जाकर देख रहा है तय्यरी मे कोई कमी तो नही रह गयी है. खेतीहर मज़दुर भी बादलों के बरसने के ईंतेजार मे रोज़ी रोज़गार की फिक्र करने लगे है फिर भी उम्मी्द कायम है.
कुलरों और एसी मे आराम करने वाले भी वर्षा के आने का बडी बेसबरी से ईंतेज़ार कर रहे है क्यों के ऊनके घर के बढते विद्युत बिल हर महीने बढते ही जा रहे है. तेज़ धुप दहकती गर्मी ने सडके सुनी कर दी है करोडों का माल दुकानो में पडा हैं चाहे कपडा हो रेडीमेड हो, ग्राहक नही के बराबर है फिर भी उम्मीद पर सुनापन झेल रहे है.
ईस वर्ष गर्मी ने जल के किए ग्रामिआसमानउठ रहीलाओं को हमेशा से कुछ ज्यादा हीं परेशान कर रखा है.अब हर नज़र आसमान की तरफ देख कर उपर वाले से कुछ तो कह रही है क्योके गर्मी असहनिय होती जा रही है सब कुछ ठप्प है बस अस्पताल मेडीकल स्टोअर्स ही ऐसे हैं जिन पर शितकाल ग्रिष्म काल बरसकाल समान हैं जिनहे उम्मीद ना उम्मीद से कोई सरोकार नही है.
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